(४) भारद्वाज गोत्र— भारद्वाज ऋषि इसके प्रवर्तक हैं । प्रवर तीन हैं (अंगिरस, भारद्वाज और वृहस्पति), यानी त्रिप्रवर कहे जाते हैं ।तात्पर्य ये है कि उक्त तीन ऋषियों को स्थापित किया जायेगा यज्ञोपवीत की गांठों में । इनका वेद ययुर्वेद है, तदनुसार उपवेद हुआ – धनुर्वेद । शाखा माध्यन्दिनी है और सूत्र कात्यायनी । छन्द है त्रिष्टुप् तथा शिखा एवं पाद दक्षिण । इस गोत्र वालों के देवता रुद्र हैं । आगे जिन-जिन पुरों के भारद्वाज गोत्र हैं, उनकी सूची आम्नाय और मूलस्थान सहित सारणी रुप में प्रस्तुत है-
आम्नाय
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पुर
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मूलस्थान
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आर १-२४
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उरवार/उरुवार
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ऊर, टेकारी,गया
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आर १-२४
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मखपवार
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मखपा,टेकारी,गया
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आर १-२४
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देवकुलियार/देवकरियार
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देवकली,देव,गया
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आर १-२४
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पडरियार
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पड़ारी,विक्रम,पटना
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आर १-२४
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अदईयार
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अदई,कोंच,गया
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आर १-२४
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पवईयार/पेवईयार
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पवई,औरंगाबाद,बिहार
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आर १-२४
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वरवार
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वारा,परइया,गया
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आर १-२४
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छत्रवार
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बेलागंज,गया
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आर १-२४
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जम्बुवार
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जमुआर,टेकारी,गया
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आदित्य १-१२
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वेलासी/विलुशैय्या/विलसैया
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बेलासी,बरसड़ा,गाजीपुर
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आदित्य १-१२
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गनिया/गड़वार/गंडार्क
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गंगटी,गया
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आदित्य १-१२
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देवडीहा/दवड़ीहार्क
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डीहा,देवकुली,गया
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आदित्य १-१२
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गुनसैया/गनैया
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गंगही,गया
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किरण १-१७
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देव वरुणार्क
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देवचन्दा,पीरो,आरा
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किरण १-१७
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पंचकंठी/पंचकंठ
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पचमो,ईमामगंज,गया
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किरण १-१७
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देवयार
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देव,टेकारी,गया
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किरण१-१७
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गंडार्क
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गंगटी,गोह,गया
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किरण१-१७
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स्वेतभद्र
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रामपुर,वस्ती,यू.पी.
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किरण१-१७
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डुंडइयार/डुडरियार
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खडराही,गया
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उपकिरण१-१८
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धर्मादित्य
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देवकुली,छपरा
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उपकिरण१-१८
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हुंड़रियार / हुणरियार
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हुणराही,टेकारी,गया
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उपकिरण १-१८
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सप्तार्क
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सेतपुर,छपरा,उ.बिहार
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उपकिरण १-१८
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देवबालार्क
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.....
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मण्डल १-१२
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भेंड़ापाकर/भड़रियार
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भंडरिया,गया
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मण्डल १-१२
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डिहिक / डिहक
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डीह,पटना
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नोटः-1.हुड़रियार अपना मूल स्थान पाण्डेपुर, बरिआवां, जिला औरंगाबाद(बिहार) भी बतलाते हैं । वर्तमान समय में वहां काफी संख्या में ये लोग हैं । मालीराज के आसपास के अन्य गांवों(बरिआवां,बेनी,पंडितविगहा,पोखराही इत्यादि) में भी हुड़रियारों की काफी संख्या है । इससे लगता है कि उनका मूल स्थान पांडेपुर ही रहा होगा ।
2. विलसैया(वेलासी)पुर गर्ग गोत्र में भी मिलते हैं । क्षत्रसार पुर कौशिक गोत्र में भी मिलते हैं । जम्मुआर क्रमशः वत्स, गर्ग और शाण्डिल्य गोत्र में भी मिलते हैं । गुनसैया कौशिक गोत्र में भी मिलते हैं । देवबालार्क शाण्डिल्य और कौशिक दोनों गोत्र में मिलते हैं । मखपवार पुर मिहिरगोत्र में भी मिलता है । ध्यातव्य है कि तदनुसार ही उनका प्रवरादि भी होना चाहिए ।
(५) कौण्डिन्य गोत्र — कौशिक गोत्र वाले त्रिप्रवर हैं - वशिष्ठ,मित्रावरुण और कौण्डिन्य । इनका वेद सामवेद है । उपवेद है गंधर्ववेद। शाखा-कौथुमी। सूत्र गोभिल । छंद है जगति । शिखा एवं पाद वाम है, तथा देवता हैं विष्णु । इस गोत्र सूची में निम्नांकित पुर आते हैं—
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