पूर्वचर्चित-- पुर,गोत्र,आम्नाय,आस्पद,प्रवर,वेद,उपवेद,शाखा,सूत्र,शिखा, पाद,छन्द,देवतादि बोधक सारिणी –
(इस सारिणी को शाकद्वीपियों के सर्वमान्य अठारह गोत्रों के अनुसार सजाया गया है। जिन गोत्रों में पुरों की संख्या अधिक है उन्हें सारणीवद्ध किया गया है, शेष यानी जिनमें संख्या कम है, सीधे-सीधे वर्णन कर दिया गया है। )
(१) मौद्गल गोत्र—मुद्गल ऋषि इसके प्रवर्तक हैं। इस गोत्र वालों का प्रवर- त्रिप्रवर होता है (मौद्गल,आंगिरस,और भार्ग्यश्व । सामवेद और ययुर्वेद इनका वेद है । तद्नुसार उपवेद है- गन्धर्ववेद और धनुर्वेद । शाखा इनकी माध्यन्दिनी और कौथुमी है । सूत्र कात्यायनी और गोभिल है । छन्द है त्रिष्टुप् तथा जगति । शिखा एवं पाद दक्षिण है । रुद्र और विष्णु इनके देवता हैं । आम्नाय- 1. अर्क (१-१७), पुर-पुण्यार्क, मूल स्थान पण्डारक, पटना । 2.किरण- (१-१७), पुर- पुनरखिया, मूलस्थान- बाढ़,पटना । 3. अथोपकिरण- (१-१८), पुर-भुजादित्य, भुजडीहा । मूल स्थान- वासौ, भोजपुर।
(२) अत्रिगोत्र— अत्रिऋषि इसके प्रवर्तक कहे गये हैं । अत्रिगोत्र वाले पञ्चप्रवर हैं । यथा— अत्रि,कृष्णात्रि,अर्चि, अचनिनस और श्यावाश्य । इनका वेद है ऋग्वेद । उपवेद है आयुर्वेद । शाखा शाकल, सूत्र आश्वलायन । छन्द गायत्री, शिखा और पाद दक्षिण तथा देवता हैं- ब्रह्मा । इनके अन्तर्गत मात्र एक पुर है— किरण आम्नाय वाला देवहापुर, जिनका मूलस्थान देव, गया है।
(३) अंगिरस(अंगौरा) गोत्र— अंगिरा ऋषि इसके प्रवर्तक हैं । इस गोत्र वालों का प्रवर- त्रिप्रवर होता है। सामवेद और ययुर्वेद इनका वेद है । तदनुसार उपवेद है- गन्धर्ववेद और धनुर्वेद । शाखा इनकी माध्यन्दिनी और कौथुमी है। सूत्र कात्यायनी और गोभिल है। छन्द हैत्रिष्टुप् तथा जगति । शिखा एवं पाद दक्षिण है। रुद्र और विष्णु इनके देवता हैं । आम्नाय- किरण (१-१७), पुर- मुकुरमेराव / कुरमेराव, मूल स्थान- यवना(आरा)। तथा किरण (१-१७) पुर अवधियार/औधियार,अरवल, बिहार।
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