Monday, 18 December 2017



(७)          शाण्डिल्य गोत्र — इस गोत्र के दो उपभेद हैं- श्रीमुखशाण्डिल्य और गर्धमुखशाण्डिल्य। दोनों त्रिप्रवर ही हैं, किन्तु ऋषि नाम भिन्न है। श्रीमुख त्रिप्रवर में शाण्डिल्य,असित और कश्यप है,जब कि गर्धमुख त्रिप्रवर में शाण्डिल्य, असित और देवल हैं। शेष सब समान हैं । वेद साम है । उपवेद गंधर्ववेद है। शाखा कौथुमी,सूत्र गोभिल, छंद जगति,शिखा और पाद बाम तथा देवता विष्ण हैं। इस गोत्र में मात्र छः पुर आते हैं। यथा—
आम्नाय
पुर
मूलस्थान
आर१-२४
भलुनियार
भलुनी,दीनारा,आरा
अर्क १- ७
वालार्क
अयोध्या
अर्क १- ७
वालार्क
देवकुली,गया
अर्क १- ७
कोणार्क
कोना,मदनपुर,औरंगाबाद
आर१-२४
जुम्बी(संदिग्ध)
दुर्गावती
मण्डल१-१२
पट्टिस
पिसनारी,पटना

नोट- ध्यातव्य है कि जुम्बी पुर भारद्वाजगोत्र में भी जम्बुआर पुर के नाम से आया है । तदनुसार उनका प्रवरादि भेद भी हो जायेगा । 

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