Friday, 21 October 2016
भगवद्गीता २-३९ और १३-४ में कहा है कि : एषा तेSभिहिता सांख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां श्रुणु। बुद्धया युक्तो यथा पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि।। गीता २-३९ -हे अर्जुन! यह बुध्दि(ज्ञान) जो सांख्य के अनुसार मैंने तुझे कही है, अब यही बुध्दि मैं तुझे योग के अनुसार कहू¡गा, जिसके ज्ञान से तू कर्म-बन्धन को नष्ट कर सकेगा। ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविषै: पृथक्। ब्रह्यसूत्रपवैश्चैव हेतुमदिभर्विनिधैश्चितै:।।४।। गीता१३-४ इस क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज्ञ (आत्मतत्वों) के विषय में ऋषियों ने वेदों ने विविध भाँति से समझाया है। (इन्ही के विषय) में ब्रह्यसूत्रों में पृथक्-पृथक् (शरीर जीवात्मा और परमात्मा के विषय में) युक्तियुक्त ढंग से (तर्क से) कथन किया है।
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