Friday, 21 October 2016

वाचस्पति मिश्र (९०० - ९८० ई) भारत के दार्शनिक थे जिन्होने अद्वैत वेदान्त का भामती नामक सम्प्रदाय स्थापित किया। वाचस्पति मिश्र ने नव्य-न्याय दर्शन पर आरम्भिक कार्य भी किया जिसे मिथिला के १३वी शती के गंगेश उपाध्याय ने आगे बढ़ाया। वादावली जीवनी वाचस्पति मिश्र प्रथम मिथिला के ब्राह्मण थे जो भारत और नेपाल सीमा के निकट मधुबनी के पास अन्धराठाढी गाँव के निवासी थे। इन्होने वैशेषिक दर्शन के अतिरिक्त अन्य सभी पाँचो आस्तिक दर्शनों पर टीका लिखी है। उनके जीवन का वृत्तान्त बहुत कुछ नष्ट हो चुका है। ऐसा माना जाता है कि उनकी एक कृति का नाम उनकी पत्नी भामती के नाम पर रखा है। कार्य वाचस्पति मिश्र प्रथम ने उस समय की हिन्दुओं के लगभग सभी प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदायों की प्रमुख कृतियों पर भाष्य लिखें हैं। इसके अतिरिक्त तत्वबिन्दु नामक एक मूल ग्रन्थ भी लिखा है जो भाष्य नहीं है। 1. तत्त्ववैशारदी – योगभाष्य पर टीका, 2. तत्त्वकौमुदी - सांख्यकारिका पर टीका, 3. न्यायसूची निबन्ध – न्यायसूत्र सम्बन्धी, 4. न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका – न्यायवार्तिक पर टीका, 5. न्याय कणिका – मण्डनमिश्र के विधिविवेक ग्रन्थ पर टीका, 6. भामती - ब्रह्मसूत्र पर टीका सर्वाधिक मान्य एवं आदरणीय 7. तत्त्वसमीक्षा – ब्रह्मसिद्धि ग्रन्थ का टीका, 8. ब्रह्मसिद्धि - वेदान्त विषयक ग्रन्थ 9. तत्त्वबिन्दु – शब्दतत्त्व तथा शब्दबोध पर आधारित लघु ग्रन्थ,


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