कर्मयोगी होना तलवार की धार पर चलकर मंजिल को तक पहुंचना है। सांसारिक प्रलोभनों से दूर होने के लिए उससे भाग जाना कर्म संन्यास में संभव है, मगर कर्मयोगी को तो संसार में रहते हुए ही उसके प्रलोभनों से निस्तार पाना होता है। ऐसे कर्मयोग को साधाकैसे जाए! संसार में रहकर उसके मोह से कैसे दूर रहा जाए, इसके लिए विभिन्न धर्मदर्शनों में अलग-अलग विधान हैं, हालांकि उनकामूलस्वर प्राय एक जैसा है। मुनिगण इसके लिए तत्व-चिंतन में लगे रहते हैं। ऋषिगण मानव-व्यवहार को नियंत्राित और मर्यादित रखने के लिए नूतन विधान गढ़ते रहते हैं। प्राचीन भारतीय मनीषियों द्वारा चार पुरुषार्थों की अभिकल्पना भी इसी के निमित्त की गई है।हिंदू परंपरा के चारों पुरुषार्थ असल जीवन के विभिन्न अर्थों में बहुआयामी सिद्धियों के भी सूचक हैं। धर्मरूपी पुरुषार्थ को साधनेका अभिप्राय है, कि हम लोकाचार में पारंगत हो चुके हैं। संसार में रहकर क्या करना चाहिए, और क्या नहीं इस सत्य को जान चुके हैं। और हम जान चुके हैं कि यह समस्त चराचर सृष्टि, भांति।भांति के जीव, वन।वनस्पति एक ही परमचेतना से उपजे हैं। एक ही परम।पिताकी संतान होने के कारण हम सब भाई भाई हैं। ध्यान रहे कि धर्म का मतलब पुरुषार्थ के रूप में सिर्फ परमात्मा तक पहुंचने का, उसकोजानने की तैयारी करना अथवा जान लेना ही नहीं है। ये सब बातें अध्यात्म के खाते में आती हैं। तब धर्म क्या है?इस बारे में मनुस्मृति मेंएक दृष्टांत दिया गया है। धर्म क्या है, यह जानने के लिए ऋषिगण भृगु मुनि के निकट पहुंचे। मुनि के समक्ष अपनी जिज्ञासा रखते हुए उन्होंने कहा—‘महाराज! हम धर्म जानना चाहते हैं?’ इसपर भृगु जी ने उत्तर दिया–‘जो अच्छे विद्वान लोग हैं, जो सबके प्रति कल्याण-भाव रखते हैं, वे जो आचरण करते हैं, सेवित करते हैं, उनके द्वारा जो आचरित होता है, वही धर्म है। धर्म की इस परिभाषा में न तो आत्मा है, न ही परमात्मा। दूसरे शब्दों में धर्म नैतिकता और सदाचरण का पर्याय है। भारतीय मेधा को अपने अद्वितीय तत्वचिंतन के कारण विश्वभर में सराहना मिली है। प्रमुख भारतीय दर्शनों न्याय, वैशेषिक, जैन, बौद्ध, चार्वाक, मीमांसा और वेदांत आदि सभी में विद्धान मुनिगण अपनी-अपनी तरह से जीवन और सृष्टि के रहस्यों की पड़ताल करने का प्रयास करते हैं। उनके दर्शन में कल्पना की अदभुत उड़ान है। इनमें से जैन, बौद्ध और वेदांत दर्शन तात्विक विवेचना के साथ।साथ जीवनको सरल और सुखमय बनाने के लिए व्यावहारिक सिद्धांत भी देते हैं। बौद्ध अष्ठधम्म पद की राह सुझाता है। जैन इसी तथ्य को और सहजता से जानने के लिए एक कहानी का सहारा लिया जा सकता है।
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