Tuesday, 21 November 2017

shri nivas gadhyam


*भारतीयदर्शनेषु मोक्षविचारः*

*भारतीयदर्शनेषु मोक्षविचारः*

1. मृत्युः मोक्षः इति *चार्वाकाः*। 
2. आत्मोच्छेदः मोक्ष इति शून्यवादिनः *माध्यमिकबौद्धाः*। 
3. निर्मलज्ञानोदयः मोक्षः इति *इतरे बौद्धाः*। 
4. कर्मकृतस्य देहस्वरूपस्य आवरणस्य अभावे जीवस्य सततोर्ध्वगमनं मोक्षः इति *जैनाः*। 
5. सर्वज्ञत्वादीनां परमात्मगुणानां प्राप्तिः याथात्म्येन भगवत्स्वरूपानुभवश्च मोक्षः इति *रामानुजीयाः*। 
6. जगत्कर्तृत्व-लक्ष्मीपतीत्व-श्रीवत्सप्राप्तिरहितं दुःखामिश्रितं पूर्णं सुखं मोक्षः इति *माध्वाः*। 
7. परमैश्वर्यप्राप्तिः मोक्षः इति *नकुलीशपाशुपताः*। 
8. शिवत्वप्राप्तिः मोक्षः इति *शैवाः*। 
9. पूर्णात्मतालाभः मोक्ष इति *प्रत्यभिज्ञावादिनः*। 
10. पारदरसेन देहस्थैर्ये जीवन्मुक्तिः एव मोक्षः इति *रसेश्वरवादिनः*। 
11. अशेषविशेषगुणोच्छेदः मोक्षः इति *वैशेषिकाः*। 
12. आत्यन्तिकी दुःखनिवृत्तिः मोक्षः इति *नैयायिकाः*। 
13. दुःखनिवृत्तिः सुखावाप्तिश्चापि इति मोक्षः इति *नैयायिकैकदेशिनः*। 
14. स्वर्गादिप्राप्तिः मोक्षः इति *मीमांसकाः*। 
15. मूलचक्रस्थायाः परानामिकायाः ब्रह्मरूपायाः वाचः दर्शनं मोक्षः इति *पाणिनीयाः*। 
16. प्रकृत्युपरमे पुरुषस्य स्वरूपेण अवस्थानं मोक्षः इति *सांख्याः*। 
17. कृतकर्तव्यतया पुरुषार्थशून्यानां सत्त्वरजस्तमसां मूलप्रकृतौ अत्यन्तलयः प्रकृतेः मोक्षः, चितिशक्तेः निरुपाधिकस्वरूपेण अवस्थानं मोक्षः इति *पातञ्जलाः*। 
18. मूलाज्ञाननिवृत्तौ स्वस्वरूपाधिगमः मोक्षः इति *अद्वैतवेदान्तिनः*।

*श्रीनिवास गद्यम्*

*श्रीनिवास गद्यम्*

श्रीमदखिलमहीमण्डलमण्डनधरणीधर मण्डलाखण्डलस्य, निखिलसुरासुरवन्दित वराहक्षेत्र विभूषणस्य, शेषाचल गरुडाचल सिंहाचल वृषभाचल नारायणाचलाञ्जनाचलादि शिखरिमालाकुलस्य, नाथमुख बोधनिधिवीथिगुणसाभरण सत्त्वनिधि तत्त्वनिधि भक्तिगुणपूर्ण श्रीशैलपूर्ण गुणवशंवद परमपुरुषकृपापूर विभ्रमदतुङ्गशृङ्ग गलद्गगनगङ्गासमालिङ्गितस्य, सीमातिग गुण रामानुजमुनि नामाङ्कित बहु भूमाश्रय सुरधामालय वनरामायत वनसीमापरिवृत विशङ्कटतट निरन्तर विजृम्भित भक्तिरस निर्घरानन्तार्याहार्य प्रस्रवणधारापूर विभ्रमद सलिलभरभरित महातटाक मण्डितस्य, कलिकर्दम मलमर्दन कलितोद्यम विलसद्यम नियमादिम मुनिगणनिषेव्यमाण प्रत्यक्षीभवन्निजसलिल समज्जन नमज्जन निखिलपापनाशना पापनाशन तीर्थाध्यासितस्य, मुरारिसेवक जरादिपीडित निरार्तिजीवन निराश भूसुर वरातिसुन्दर सुराङ्गनारति कराङ्गसौष्ठव कुमारताकृति कुमारतारक समापनोदय दनूनपातक महापदामय विहापनोदित सकलभुवन विदित कुमारधाराभिधान तीर्थाधिष्ठितस्य, धरणितल गतसकल हतकलिल शुभसलिल गतबहुल विविधमल हतिचतुर रुचिरतर विलोकनमात्र विदलित विविध महापातक स्वामिपुष्करिणी समेतस्य, बहुसङ्कट नरकावट पतदुत्कट कलिकङ्कट कलुषोद्भट जनपातक विनिपातक रुचिनाटक करहाटक कलशाहृत कमलारत शुभमञ्जन जलसज्जन भरभरित निजदुरित हतिनिरत जनसतत निरस्तनिरर्गल पेपीयमान सलिल सम्भृत विशङ्कट कटाहतीर्थ विभूषितस्य, एवमादिम भूरिमञ्जिम सर्वपातक गर्वहापक सिन्धुडम्बर हारिशम्बर विविधविपुल पुण्यतीर्थनिवह निवासस्य, श्रीमतो वेङ्कटाचलस्य शिखरशेखरमहाकल्पशाखी, खर्वीभवदति गर्वीकृत गुरुमेर्वीशगिरि मुखोर्वीधर कुलदर्वीकर दयितोर्वीधर शिखरोर्वी सतत सदूर्वीकृति चरणघन गर्वचर्वणनिपुण तनुकिरणमसृणित गिरिशिखर शेखरतरुनिकर तिमिरः, वाणीपतिशर्वाणी दयितेन्द्राणिश्वर मुख नाणीयोरसवेणी निभशुभवाणी नुतमहिमाणी य स्तन कोणी भवदखिल भुवनभवनोदरः, वैमानिकगुरु भूमाधिक गुण रामानुज कृतधामाकर करधामारि दरललामाच्छकनक दामायित निजरामालय नवकिसलयमय तोरणमालायित वनमालाधरः, कालाम्बुद मालानिभ नीलालक जालावृत बालाब्ज सलीलामल फालाङ्कसमूलामृत धाराद्वयावधीरण धीरललिततर विशदतर घन घनसार मयोर्ध्वपुण्ड्र रेखाद्वयरुचिरः, सुविकस्वर दलभास्वर कमलोदर गतमेदुर नवकेसर ततिभासुर परिपिञ्जर कनकाम्बर कलितादर ललितोदर तदालम्ब जम्भरिपु मणिस्तम्भ गम्भीरिमदम्भस्तम्भ समुज्जृम्भमाण पीवरोरुयुगल तदालम्ब पृथुल कदली मुकुल मदहरणजङ्घाल जङ्घायुगलः, नव्यदल भव्यमल पीतमल शोणिमलसन्मृदुल सत्किसलयाश्रुजलकारि बल शोणतल पदकमल निजाश्रय बलबन्दीकृत शरदिन्दुमण्डली विभ्रमदादभ्र शुभ्र पुनर्भवाधिष्ठिताङ्गुलीगाढ निपीडित पद्मावनः, जानुतलावधि लम्ब विडम्बित वारण शुण्डादण्ड विजृम्भित नीलमणिमय कल्पकशाखा विभ्रमदायि मृणाललतायित समुज्ज्वलतर कनकवलय वेल्लितैकतर बाहुदण्डयुगलः, युगपदुदित कोटि खरकर हिमकर मण्डल जाज्वल्यमान सुदर्शन पाञ्चजन्य समुत्तुङ्गित शृङ्गापर बाहुयुगलः, अभिनवशाण समुत्तेजित महामहा नीलखण्ड मदखण्डन निपुण नवीन परितप्त कार्तस्वर कवचित महनीय पृथुल सालग्राम परम्परा गुम्भित नाभिमण्डल पर्यन्त लम्बमान प्रालम्बदीप्ति समालम्बित विशाल वक्षःस्थलः, गङ्गाझर तुङ्गाकृति भङ्गावलि भङ्गावह सौधावलि बाधावह धारानिभ हारावलि दूराहत गेहान्तर मोहावह महिम मसृणित महातिमिरः, पिङ्गाकृति भृङ्गार निभाङ्गार दलाङ्गामल निष्कासित दुष्कार्यघ निष्कावलि दीपप्रभ नीपच्छवि तापप्रद कनकमालिका पिशङ्गित सर्वाङ्गः, नवदलित दलवलित मृदुललित कमलतति मदविहति चतुरतर पृथुलतर सरसतर कनकसरमय रुचिरकण्ठिका कमनीयकण्ठः, वाताशनाधिपति शयन कमन परिचरण रतिसमेताखिल फणधरतति मतिकरवर कनकमय नागाभरण परिवीताखिलाङ्गा वगमित शयन भूताहिराज जातातिशयः, रविकोटी परिपाटी धरकोटी रवराटी कितवीटी रसधाटी धरमणिगणकिरण विसरण सततविधुत तिमिरमोह गार्भगेहः, अपरिमित विविधभुवन भरिताखण्ड ब्रह्माण्डमण्डल पिचण्डिलः, आर्यधुर्यानन्तार्य पवित्र खनित्रपात पात्रीकृत निजचुबुक गतव्रणकिण विभूषण वहनसूचित श्रितजन वत्सलतातिशयः, मड्डुडिण्डिम ढमरु जर्घर काहली पटहावली मृदुमद्दलादि मृदङ्ग दुन्दुभि ढक्किकामुख हृद्य वाद्यक मधुरमङ्गल नादमेदुर नाटारभि भूपाल बिलहरि मायामालव गौल असावेरी सावेरी शुद्धसावेरी देवगान्धारी धन्यासी बेगड हिन्दुस्तानी कापी तोडि नाटकुरुञ्जी श्रीराग सहन अठाण सारङ्गी दर्बारु पन्तुवराली वराली कल्याणी भूरिकल्याणी यमुनाकल्याणी हुशेनी जञ्झोठी कौमारी कन्नड खरहरप्रिया कलहंस नादनामक्रिया मुखारी तोडी पुन्नागवराली काम्भोजी भैरवी यदुकुलकाम्भोजी आनन्दभैरवी शङ्कराभरण मोहन रेगुप्ती सौराष्ट्री नीलाम्बरी गुणक्रिया मेघगर्जनी हंसध्वनि शोकवराली मध्यमावती जेञ्जुरुटी सुरटी द्विजावन्ती मलयाम्बरी कापीपरशु धनासिरी देशिकतोडी आहिरी वसन्तगौली सन्तु केदारगौल कनकाङ्गी रत्नाङ्गी गानमूर्ती वनस्पती वाचस्पती दानवती मानरूपी सेनापती हनुमत्तोडी धेनुका नाटकप्रिया कोकिलप्रिया रूपवती गायकप्रिया वकुलाभरण चक्रवाक सूर्यकान्त हाटकाम्बरी झङ्कारध्वनी नटभैरवी कीरवाणी हरिकाम्भोदी धीरशङ्कराभरण नागानन्दिनी यागप्रियादि विसृमर सरस गानरुचिर सन्तत सन्तन्यमान नित्योत्सव पक्षोत्सव मासोत्सव संवत्सरोत्सवादि विविधोत्सव कृतानन्दः श्रीमदानन्दनिलय विमानवासः, सतत पद्मालया पदपद्मरेणु सञ्चितवक्षस्तल पटवासः, श्रीश्रीनिवासः सुप्रसन्नो विजयतां. श्री‌अलर्मेल्मङ्गा नायिकासमेतः श्रीश्रीनिवास स्वामी सुप्रीतः सुप्रसन्नो वरदो भूत्वा, पवन पाटली पालाश बिल्व पुन्नाग चूत कदली चन्दन चम्पक मञ्जुल मन्दार हिञ्जुलादि तिलक मातुलुङ्ग नारिकेल क्रौञ्चाशोक माधूकामलक हिन्दुक नागकेतक पूर्णकुन्द पूर्णगन्ध रस कन्द वन वञ्जुल खर्जूर साल कोविदार हिन्ताल पनस विकट वैकसवरुण तरुघमरण विचुलङ्काश्वत्थ यक्ष वसुध वर्माध मन्त्रिणी तिन्त्रिणी बोध न्यग्रोध घटवटल जम्बूमतल्ली वीरतचुल्ली वसति वासती जीवनी पोषणी प्रमुख निखिल सन्दोह तमाल माला महित विराजमान चषक मयूर हंस भारद्वाज कोकिल चक्रवाक कपोत गरुड नारायण नानाविध पक्षिजाति समूह ब्रह्म क्षत्रिय वैश्य शूद्र नानाजात्युद्भव देवता निर्माण माणिक्य वज्र वैढूर्य गोमेधिक पुष्यराग पद्मरागेन्द्र नील प्रवालमौक्तिक स्फटिक हेम रत्नखचित धगद्धगायमान रथ गज तुरग पदाति सेना समूह भेरी मद्दल मुरवक झल्लरी शङ्ख काहल नृत्यगीत तालवाद्य कुम्भवाद्य पञ्चमुखवाद्य अहमीमार्गन्नटीवाद्य किटिकुन्तलवाद्य सुरटीचौण्डोवाद्य तिमिलकवितालवाद्य तक्कराग्रवाद्य घण्टाताडन ब्रह्मताल समताल कोट्टरीताल ढक्करीताल एक्काल धारावाद्य पटहकांस्यवाद्य भरतनाट्यालङ्कार किन्नेर किम्पुरुष रुद्रवीणा मुखवीणा वायुवीणा तुम्बुरुवीणा गान्धर्ववीणा नारदवीणा स्वरमण्डल रावणहस्तवीणास्तक्रियालङ्क्रियालङ्कृतानेकविधवाद्य वापीकूपतटाकादि गङ्गायमुना रेवावरुणा
शोणनदीशोभनदी सुवर्णमुखी वेगवती वेत्रवती क्षीरनदी बाहुनदी गरुडनदी कावेरी ताम्रपर्णी प्रमुखाः महापुण्यनद्यः सजलतीर्थैः सहोभयकूलङ्गत सदाप्रवाह ऋग्यजुस्सामाथर्वण वेदशास्त्रेतिहास पुराण सकलविद्याघोष भानुकोटिप्रकाश चन्द्रकोटि समान नित्यकल्याण परम्परोत्तरोत्तराभिवृद्धिर्भूयादिति भवन्तो महान्तोज़्नुगृह्णन्तु, ब्रह्मण्यो राजा धार्मिकोज़्स्तु, देशोयं निरुपद्रवोज़्स्तु, सर्वे साधुजनास्सुखिनो विलसन्तु, समस्तसन्मङ्गलानि सन्तु, उत्तरोत्तराभिवृद्धिरस्तु, सकलकल्याण समृद्धिरस्तु ॥

हरिः ॐ ॥

Monday, 13 November 2017

श्रीदुर्गाध्यानाष्टकम्

श्रीदुर्गाध्यानाष्टकम्
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                   (१)
चं चं चं चन्द्रचूडा चरणरणरणा
                           चातुरी चारुनेत्रा
जं जं जं जाल्मजैत्री  जनगणजयदा 
                         ज्वालिनी योगजन्मा ।
डं डं डं डामरोक्ता डमरुडमडमा 
                          डाकिनी दण्डदात्री
रं रं रं रक्तवर्णा रणनिकररता 
                           रातु शं रम्यदुर्गा ।।
                     (२)
या देवी शशिशेखरा भयहरा
                          देवासु्रैर्वन्दिता
स्वर्णाढ्या कमनीयकान्तिलसिता           
                          केयूरसंशोभिता ।
शाटी भाति कटीतटे कनकभा 
                         यस्या गले मौक्तिकं
नित्यं तां परमेश्वरीं भगवतीं 
                          दुर्गां भजे सर्वदाम् ॥
                    (३)
यां नत्वा विबुधा ब्रजन्ति समरं 
                         हन्तुं महाराक्षसान्
सिद्धा इष्टफलाय योगिपुरुषा 
                        योगं सदा सिद्धये ।
भक्ताः प्रेमरसं जनाश्च विभवं 
                          बीरा बलं प्राप्तये
नित्यं तां परमेश्वरीं भगवतीं 
                      दुर्गां भजे सर्वदाम् ॥
                   (४)
यस्याः पादतले नमन्ति सकला 
                         लोका महीमण्डले
लब्धुं दिव्यफलं धनानि कुशलं 
                         सौभाग्यराशिं सदा ।
यत्कीर्त्तिं भुवनत्रये विहरते 
                         यन्नाम शक्तिप्रदं
नित्यं तां परमेश्वरीं भगवतीं 
                         दुर्गां भजे सर्वदाम् ॥
                    (५)
या माता भवतारिणी शशीमुखी
                         विश्वात्मिका भार्गवी
दैत्यध्वंसकरी प्रमाददलिनी 
                          यापि स्वयं पार्वती ।
यस्याः पादयुगे ब्रजन्ति शरणं 
                           लब्धुं कृपां साधवो
नित्यं तां परमेश्वरीं भगवतीं 
                           दुर्गां भजे सर्वदाम् ॥
                     (६)
भक्तानां प्रियदायिनी प्रियमयी 
                           विद्युत्प्रभाशोभिता
हस्तैः शूलगदासिवारिजधरा 
                            भालेपि नेत्रान्विता ।
शीर्षांशे शशिलाञ्छना रविनिभा   
                            लोकार्त्त संमर्द्दिनी
नित्यं तां परमेश्वरीं भगवतीं 
                           दुर्गां भजे सर्वदाम् ॥
                    (७)
मुक्तादामविलम्बिनी कमलिनी
                           सिंहासिनी शूलिनी
शम्भुप्राण-विमोहिनी त्रिनयना 
                            संतापसंहारिणी ।
प्राणत्राणपरायणी हि जननी 
                            संसारसंपालिनी
नित्यं तां परमेश्वरीं भगवतीं 
                           दुर्गां भजे सर्वदाम् ॥
                      (८)
बुद्ध्या शुम्भनिशुम्भदैत्यशमनी
                                या शत्रुवंशार्द्दिनी
शक्त्या या महिषासुरप्रमथिनी 
                          लोकार्त्तिसंघातिनी ।
प्रीत्या वैभवभक्तिशक्तिकुशलं 
                             भक्ताय दत्ते च या
नित्यं तां परमेश्वरीं भगवतीं 
                            दुर्गां भजे सर्वदाम् ॥

वेदानुसार ऋषि कौन हैं ?

वेदानुसार ऋषि कौन हैं ?


प्रत्यर्धिर्यज्ञानामश्वहयो रथानाम्।

ऋषि: स यो मनुर्हितो विप्रस्य यावयत्सख: ॥

                                (ऋ० १० । २६ । ५)

शब्दार्थ :- (ऋषि: स:) ऋषि वह है (य:) जो (यज्ञानां प्रति अर्धि:) यज्ञों का प्रतिपादक है, जो यज्ञ के तुल्य शुद्ध , पवित्र , एवं निष्पाप है , (रथानाम् अश्व:-हय:) जो रथों का = जीवन-रथों का आशु प्रेरक है , शीघ्र संचालक है , शुभ कर्मो का प्राण है , (मनु: हित:) जो मनुष्य मात्र का कल्याण चाहने वाला है , (विप्रस्य सख:) जो ज्ञानी , बुद्धिमान और धार्मिक व्यक्तियों का सखा है , (यावयत्) जो सब दुखों को दूर कर देता है ।

भावार्थ :- ऋषि कौन है ? विभिन्न ग्रन्थों में ऋषि शब्द की विभिन्न व्याख्याएँ मिलेंगी।

वेद की जो ऋषि शब्द की परिभाषा है वह अपूर्व , अद्भुत एवं निराली है । ऋषि के लक्षणों का वर्णन करते हुए वेद कहता है –

१.  ऋषि वह है जो यज्ञों = श्रेष्ठ कर्मों का सम्पादन करता है , जो स्वयं यज्ञ के समान पवित्र एवं निर्दोष है और शुभ कार्यों को ही करता है ।

२.  ऋषि वह है जो जीवन रथों को शीघ्र प्रेरणा देता है , जो कुटिल , दुराचारी , व्यभिचारी , व्यक्तियों को भी अपनी सुप्रेरणा से सुपथ पर चलता है ।

३.  ऋषि वह है जो बिना किसी भेदभाव के , बिना पक्षपात के मनुष्यमात्र का हितसाधक हो ।

४. ऋषि वह है जो ज्ञानियों व बुद्धिमान व्यक्तियों का मित्र है ।

५. ऋषि वह है जो मनुष्य-मात्र की परिधि से भी आगे बढ़कर प्राणिमात्र के कष्टों और दुखों को दूर करता है ।

Wednesday, 1 November 2017

बालबोध-सूक्तयः

Poetry Section of Balabodha – Part 1
There are three chapters in Poetry Section of Balabodha.
First chapter gives meaning and gist of following ten maxims.
१ यथा कर्म तथा फलम् = As you sow, so you reap.
२ आशा दुःखस्य कारणम् = Greed is the root cause of sorrow.
३ दूरतः पर्वताः रम्याः = Mountains look Beautiful from a distance.
४ गतस्य शोकः न कर्तव्यः = No use crying over spilt milk.
५ शीलं परम् भूषणम् = Character is man’s best ornament.
६ अति तृष्णा विनाशाय = Extreme hankering leads to destruction.
७ कायः कस्य न वल्लभः = To whom is body not dear ?
८ मूर्खस्य नास्ति औषधम् = There is no medicine for a fool.
९ बलीयसी केवलं ईश्वरेच्छा = The will of God is supreme.
१० जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी = Mother and motherland are of greater importance than heaven.
The exercise given is – “Answer following questions –
१ दुःखस्य कारणम् किम् ?
२ कस्य शोकः न कर्तव्यः ?
३  परम् भूषणम् किम् ?
४ सर्वस्य कः वल्लभः भवति ?
५  कस्य औषधम् नास्ति ?
६ कस्य इच्छा बलीयसी ?
७ स्वर्गादपि का गरीयसी ?
One can frame number of questions by oneself and practise answering them.

॥जयेत् नीलतिमिङ्गिलम्॥







॥जयेत् नीलतिमिङ्गिलम्॥ ॥jayet nīlatimiṅgilam॥



नीलमेघनिभं कृष्णं नत्वाद्य शिरसा मुहुः।
नीलं तिमिङ्गिलं जेतुं दशोपायान् ब्रवीम्यहम्॥
nīlameghanibhaṃ kṛṣṇaṃ natvādya śirasā muhuḥ।
nīlaṃ timiṅgilaṃ jetuṃ daśopāyān bravīmyaham॥ 

I bow down my head to salute kṛṣṇa who resembles a dark (nila) cloud and state ten ways by which one can conquer the blue whale.

पिता यस्य तु मित्रं स्यात् माता चाप्ता मनस्विनी।
स युवा तं जयेत् जिह्मं नीलवर्णं तिमिङ्गिलम्॥१॥
pitā yasya tu mitraṃ syāt mātā cāptā manasvinī।
sa yuvā taṃ jayet jihmaṃ nīlavarṇaṃ timiṅgilam॥1॥

The youth who has an amicable relationship with his father and mother and confides with them will conquer that crooked blue whale.


यन्त्रदासस्तु यो न स्यात् यन्त्रं दासस्तु यत्कृते
स युवा तं जयेत् जिह्मं नीलवर्णं तिमिङ्गिलम्॥२॥
yantradāsastu yo na syāt yantraṃ dāsastu yatkṛte
sa yuvā taṃ jayet jihmaṃ nīlavarṇaṃ timiṅgilam॥2॥ 

The Youth who is not a slave to the gadgets and whom has a master-like control over his gadget-usage will conquer that crooked blue whale.  

क्रीडाङ्गणे तु यः स्विद्येत् नित्यं मित्रैः समं सुधीः।
स युवा तं जयेत् जिह्मं नीलवर्णं तिमिङ्गिलम्॥३॥
krīḍāṅgaṇe tu yaḥ svidyet nityaṃ mitraiḥ samaṃ sudhīḥ।
sa yuvā taṃ jayet jihmaṃ nīlavarṇaṃ timiṅgilam॥3॥

The intelligent youth who sweats it out in the playground daily with his friends, will conquer that crooked blue whale.

यस्तु सञ्चरते देशान् गृहान्मुक्तोऽतिसीमितात्।
स युवा तं जयेत् जिह्मं नीलवर्णं तिमिङ्गिलम्॥ ४॥  
yastu sañcarate deśān gṛhānmukto'tisīmitāt।
sa yuvā taṃ jayet jihmaṃ nīlavarṇaṃ timiṅgilam॥ 4॥

The youth who is not confined to the limits of his house and visits various places will conquer that crooked blue whale. 

समाजहितचिन्तावान् तत्क्रियातत्परस्तु यः।
स युवा तं जयेत् जिह्मं नीलवर्णं तिमिङ्गिलम्॥५॥
samājahitacintāvān tatkriyātatparastu yaḥ।
sa yuvā taṃ jayet jihmaṃ nīlavarṇaṃ timiṅgilam॥5॥

The youth who thinks about the welfare of the society and who actively involves in such activities will conquer that crooked blue whale. 

गीतनाट्यकलासक्तः तत्पाटवसमुत्सुकः।
स युवा तं जयेत् जिह्मं नीलवर्णं तिमिङ्गिलम्॥६॥
gītanāṭyakalāsaktaḥ tatpāṭavasamutsukaḥ।
sa yuvā taṃ jayet jihmaṃ nīlavarṇaṃ timiṅgilam॥6॥ 

The Youth who is interested in arts like music and dance and is bent upon achieving excellence in them will conquer that crooked blue whale. 

ऋजुत्वादकुतोभीतिः, रहस्यं न हि यत्कृतौ।
स युवा तं जयेत् जिह्मं नीलवर्णं तिमिङ्गिलम्॥७॥
ṛjutvādakutobhītiḥ rahasyaṃ na hi yatkṛtau।
sa yuvā taṃ jayet jihmaṃ nīlavarṇaṃ timiṅgilam॥7॥

The Youth who is straightforward (in his deeds) and hence does not have fear from any quarters and does not require to, consequently, keep his acts secret, will conquer that crooked blue whale.  

विवेकी यस्तु नो हिंस्यात् मिथ्याहेतोर्निजं परम्।
स युवा तं जयेत् जिह्मं नीलवर्णं तिमिङ्गिलम्॥८॥
vivekī yastu no hiṃsyāt mithyāhetornijaṃ param।
sa yuvā taṃ jayet jihmaṃ nīlavarṇaṃ timiṅgilam॥8॥

The Youth, who is wise and hence does not harm himself or others for frivolous reasons will conquer that crooked blue whale.  

वैफल्यं दौर्मनस्यं यो योगादिबलतो हरेत्।
स युवा तं जयेत् जिह्मं नीलवर्णं तिमिङ्गिलम्॥९॥
vaiphalyaṃ daurmanasyaṃ yo yogādibalato haret।
sa yuvā taṃ jayet jihmaṃ nīlavarṇaṃ timiṅgilam॥9॥

The Youth who is able to manage his failures and disappointments by the strength of Yoga and other such methods (and to that end does not gets addicted to undesirable things like blue whale etc) will conquer that crooked blue whale.    

दिनचर्या तु यस्य स्यात् साध्वी नियतमास्थिता।
स युवा तं जयेत् जिह्मं नीलवर्णं तिमिङ्गिलम्॥१०॥
dinacaryā tu yasya syāt sādhvī niyatamāsthitā।
sa yuvā taṃ jayet jihmaṃ nīlavarṇaṃ timiṅgilam॥10॥ 

The youth who has a well-rounded daily schedule and adheres to it assiduously  
will conquer that crooked blue whale.

तिमिङ्गिलं तद्गिलं वा
 जयेज्जीव्याच्छतं समाः।
           स युवा यस्य दशकमुपायानामिदं वशे॥      
timiṅgilaṃ tadgilaṃ vā jayejjīvyācchataṃ samāḥ।
sa yuvā yasya daśakamupāyānāmidaṃ vaśe॥       

The Youth can conquer (Blue) Whale or even a bigger entity than that and live a full hundred years if he masters these ten methods. 
   

॥इति हेमलम्बनामसंवत्सरे भाद्रपदमासस्य शुक्लपक्षद्वादश्यां श्रीमद्वसन्तामहादेवसूनुना जयरामेण रचितः नीलतिमिङ्गिलविषयकः पद्यगुच्छः सम्पूर्णः॥

॥iti hemalambanāmasaṃvatsare bhādrapadamāsasya śuklapakṣadvādaśyāṃ śrīmadvasantāmahādeva-sūnunā jayarāmeṇa racitaḥ nīlatimiṅgilaviṣayakaḥ padyagucchaḥ sampūrṇaḥ॥

Thus ends the set of verses on the Blue Whale penned by Jayaraman the Son of Sri Mahadevan and Srimati Vasanta on the bhādrapada-śuklapakṣa-dvādaśi of hemalambanāmasaṃvatsara (September 3, 2017)